शिवपुरी। वन-डे क्रिकेट में जब तक आखिरी बॉल नहीं फिक जाती, तब तक कुछ भी हो सकता है। ठीक उसी तरह जब तक जीवन में अंतिम सांस है तब तक परिवर्तन की आस बनी रहती है। जब जागो तभी सवेरा। उक्त उदगार आराधना भवन में प्रसिद्ध जैन संत कुलदर्शन सूरि जी महाराज ने श्रोताओं की विशाल भीड़ को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने यह भी बताया कि जीवन में क्या निरर्थक है और क्या सार्थक है। लेकिन दुख भरे स्वर में कहा कि अधिकांश इंसान निरर्थक चीजों को इक_ा करने में जीवनभर लगा रहता है। लेकिन निरर्थक के इक_ा करने के चक्कर में वह सार्थक चीजों पर उसका ध्यान नहीं जाता। धर्म सभा में उनके गुरू जैनाचार्य श्री कुलचंद्र सूरि जी महाराज और नवोदित मुनि श्री कुलधर्म सूरि जी महाराज भी उपस्थित थे।
पंन्यास प्रवर कुलदर्शन श्री जी महाराज ने कहा कि बाणी पर संयम न रखने के कारण आज घर-घर में महाभारत हो रही है। समय और शब्द एक बार हाथ से निकल गया तो फिर वापिस नहीं आते। उन्होंने कहा कि शब्द औषधि का भी काम करते हैं और जहर का भी। इनका क्या उपयोग करना है, यह हम पर निर्भर है। शब्द का चुनाव करना हमारे हाथ में है और यदि सही शब्द का चुनाव किया तो जीवन स्वर्ग और गलत शब्द का चुनाव किया तो जीवन नर्क बनते देर नहीं लगती।
जब बोलना हमारे हाथ में है तो क्यों न अच्छा बोला जाए। महाराज श्री ने कहा कि देव गुरू और धर्म पर हमारा विश्वास अटूट होना चाहिए। चार्तुमास के 120 दिन में कम से कम 100 दिन आप लोग दिन में सुबह से लेकर रात तक कभी भी हमारे कुल गुरू आचार्य विजय धर्म सूरि जी के समाधि के दर्शन अवश्य कीजिए और इसका संकल्प लें तथा फिर इसका परिणाम देखें। धर्म के प्रति विश्वास और श्रृद्धा अटूट होनी चाहिए।
संत कुलदर्शन श्रीजी ने कहा कि इंसान को सीखने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। सीखने की कोई उम्र नहीं होती। हम पूरे चार माह यहां सिखाने के लिए आए हैं। सीखने से जीवन में परिवर्तन कभी भी आ सकता है। जीवन की अंतिम सांस तक आत्मरूपांतरण की संभावना रहती है। जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए हमें हमेशा तत्पर रहना चाहिए। महाराज श्री ने अंत में कहा कि अपने दोषों को देखकर आंख में आंसू लाना चाहिए। आंख में आंसू अगर आ गए तो जीवन में परिवर्तन कोई रोक नहीं सकता।
संसार पुण्य से और धर्म पुरुषार्थ से चलता है
संत कुलदर्शन सूरि जी ने बताया कि संसार पुण्य से चलता है जबकि धर्म पुरुषार्थ से। आपके भाग्य में जितना पुण्य है उसी अनुरूप आपको ऐश्वर्य मिलेगा। भले ही आप कितनी भी मेहनत, प्रयत्न और पुरुषार्थ कर लें। पुण्य की पूंजी जितनी अधिक उतना अधिक सांसारिक जीवन आनंददायक होता है। लेकिन धर्म की गाड़ी पुरुषार्थ से चलती है। धर्म करने के लिए मन में भावना प्रवल होनी चाहिए। किसी तीर्थ यात्रा पर नहीं जा पाए तो यह नहीं कहना कि भगवान ने हमें बुलाया नहीं। बल्कि इसका कारण यह है कि आपके पुरूषार्थ में कहीं न कहीं कमी है।