अशोक कोचेटा@ शिवपुरी। लंबे समय तक दो-दो पदों से चिपके रहने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि उनका कहना है कि नेता प्रतिपक्ष के पद से वह पहले ही सोनिया गांधी को इस्तीफा दे चुके थे, लेकिन सूत्रों के अनुसार पार्टी के दबाव के चलते उन्हें नेता प्रतिपक्ष पद छोडऩा पड़ा।
नेता प्रतिपक्ष पद पर कांग्रेस ने लहार विधानसभा क्षेत्र से 8 बार के विधायक 75 वर्षीय गोविंद सिंह की नियुक्ति की गई थी। गोविंद सिंह की नियुक्ति को पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की मजबूत पकड़ के रूप में देखा जा रहा है। गोविंद सिंह कांग्रेस की राजनीति में उनके ही खेमे के माने जाते हैं और राजनैतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार विधानसभा चुनाव में सिंधिया की घेराबंदी के लिए ही कांग्रेस ने वयोवृद्ध गोविंद सिंह पर दाव लगाया है।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ग्वालियर चंबल संभाग की 34 सीटों में से 26 सीटों पर विजय हांसिल की थी। जिसके चलते ही प्रदेश में कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला था। कांग्रेस की जीत का श्रेय उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया को दिया गया था। लेकिन सवाल यह है कि क्या गोङ्क्षवद सिंह आगामी विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया की मजबूत चुनौती का सामना कर पाएंगे। जब गोविंद सिंह से इस बावत सवाल पूछा गया तो उन्होंने गंभीरता से कहा कि जो व्यक्ति अपने प्रतिनिधि से ही चुनाव हार गया हो, उसे वह मजबूत चुनौती नहीं मानते।
निर्विवाद रूप से गोविंद सिंह कांग्रेस में अच्छी छवि के नेता माने जाते हैं। उनका मनोबल मजबूत है और रावतपुरा सरकार से सफल पंगा लेकर उन्होंने साबित किया कि वह साहसी भी कम नहीं है और आत्मविश्वास से परिपूर्ण हैं। यहीं कारण है कि चुनाव में वह आसानी से विजयी होते रहे हैं।
उन पर भ्रष्टाचार का भी अभी तक कोई गंभीर आरोप नहीं लगा है तथा आज की राजनीति के दोहन युग में भी वह अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। यहीं कारण है कि इलाके में खासा प्रभाव रखने वाले रावतपुरा सरकार के श्राप के बावजूत गोविंद सिंह चुनाव जीतने में सफल रहे थे। लहार विधानसभा में वह अब तक अपराजेय हैं। तीखे प्रहार और कटाक्ष करने में भी उनका कोई सानी नहीं है।
कांग्रेस में रहते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए वह सिंधिया स्टेट के महाराजा शब्द का संबोधन करते रहे हैं। सिंधिया राजवंश से उनकी टसल पुरानी है। दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में स्व. माधवराव सिंधिया के विरोध के कारण ही गोविंद सिंह को काफी समय तक दिग्विजय सिंह अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं कर पाए थे।
समाजवादी विचारधारा के गोविंद सिंह सामंतवाद के खिलाफ खासे मुखर रहे हैं। अच्छी छवि, मजबूत और जूझारू नेतृत्व गुणों से परिपूर्ण होने के बावजूद भी उम्र के तकाजे की भी कोई अहमियत होती है। गोविंद सिंह पिछले दो चुनावों से कहते रहे हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है और अब 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी से नवाजा है। कांग्रेस की शक्तिहीनता के दौर में वह प्रभावी होंगे इस पर सवाल खड़े करना अनुचित नहीं होगा।
कांग्रेस में जीतू पटवारी, तरूण भनोत, प्रियव्रत सिंह, जयवर्धन सिंह जैसे युवाओं के होते हुए गोविंद सिंह जैसे वयोवृद्ध नेता को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी देना एक अबूझ पहली है। कांग्रेस ने फिर साबित किया है कि वह वक्त से सीखने के लिए तैयार नहीं है और बुजुर्गो के अनुभवों पर ही उसे भरोसा है। अपनी कर्मभूमि से बाहर निकलकर उन्होंने जलवा दिखाया हो ऐसा कोई उदाहरण दृष्टिगोचर भी नहीं होता।
इसके बावजूद भी राजनीति के वर्तमान दौर में उनके समक्ष लगभग वैसी ही चुनौती है जैसी रावतपुरा सरकार ने उन्हें हराने का श्राप देकर दी थी और उन्होंने उस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना किया था तथा विजय को वरण किया था। देखना यह है कि क्या इसी तर्ज पर वह 2023 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल संभाग में सिंधिया के प्रभा मंडल को ध्वस्त कर पाएंगे या नहीं। समय ही इस महत्वपूर्ण सवाल का जबाव देगा।