पिछोर। राज्य पुरातत्व विभाग भोपाल के निर्देश पर ग्वालियर पुरातत्व विभाग एवं राज्य पर्यटन विभाग की संयुक्त टीम ने आकर पिछोर के ऐतिहासिक किले का सर्वे किया। पर्यटन विभाग के कार्यपालन यंत्री महेंद्र सिंह दंडोतिया ने जानकारी देते हुए बताया कि राज्य शासन के निर्देश पर सर्वे किया गया है। पिछोर के किले का रिस्टोर करना है। यह किला पुरातत्व विभाग के संरक्षण में शिवपुरी से चंदेरी और ग्वालियर से चंदेरी के मार्ग में पड़ता है।
ग्वालियर और शिवपुरी से पर्यटन के लिए चंदेरी जाने वाले पर्यटकों को बीच में देखने के लिए अच्छा साबित होगा। इस किले को देखेंगे तो पर्यटन की दृष्टि से पिछोर को फायदा ही होगा। अभी तो किले का सर्वे किया है। फिलहाल यह देखा जा रहा है कि इस किले को कैसे बचाया जाए। इसमें टूट फूट हो चुकी है और कई गुंबद गिर गए हैं। दीवार के साथ छत भी टपक रही है। पहले इनकी मरम्मत की जाएगी। प्र
यास है कि इसे पूर्व की तरह बनाया जाए। सर्वे के दौरान अंदर गार्डन, वाहन पार्किंग का भी प्रस्ताव भेजा है। सर्वे के साथ स्टेट आर्कोलॉजी का कंजर्वेशन करने के साथ मेजरमेंट लेने थे, जो ले लिए हैं। अब बजट स्वीकृत होने के बाद मेंटेनेंस का कार्य शुरू होगा
यह हैं पिछोर किले का इतिहास
शिवपुरी जिले की पिछोर तहसील पूर्वोत्तर 50 किमी , झांसी से दक्षिण पश्चिम में 80 किमी एवं करैरा के दक्षिण में 35 किमी दूर स्थित है। मध्यकाल में यहाँ से आगरा से दक्षिण भारत का रास्ता गुजरता था। इस रास्ते की निगरानी के लिए पिछोर को महत्वपूर्ण मानते हुए ओरक्षा नरेश ने इसे जागीर मुकाम कायम कर गढ़ी नुमा छोटा सा किला स्थापित कर दिया था।
यहाँ का किला पिछोर बस्ती के पश्चिम दिशा में पहाड़ी पर स्थित है। किला पहाड़ी के पश्चिम भाग में मोती सागर तालाब निर्मित है। किला आयताकार है। शिखर पर निर्मित किला प्राँगण एवं महल के कुछ नीचे 25-30 फुट ऊँचा परकोटा है।
किले का मुख्य दरवाजा पूरब में परकोटे की मध्य के गुर्ज से सटकर निर्मित है। दूसरा दरवाजा उत्तराभिमुखी है जो तालाब के बांध की ओर खुलता है। किले के उत्तरी भाग में राजमहल आदि तथा दक्षिण में सैनिकों,कामदार,कर्मचारियों के कक्ष भग्नावस्था में है।किले तालाब बाबड़ी आदि पेयजल आपूर्ति के लिए बनी हुई है।
किले के बाहर उत्तर में तालाब के बांध पर नरसिंह मंदिर, रसिक बिहारी , रणछोड़ तथा हनुमान मंदिर आदि बने है। ये मंदिर 16 वी सदी के है तथा इन पर ओरछा के मंदिर वास्तु का प्रभाव है।
पिछोर का नाम परमारों के प्रभुत्व काल मे 13 वीं सदी में होना मालूम होता है। परमारो का ठिकाना पम्बा में था इनके वसंज करैरा मानपुरा में थे। मानपुरा वर्तमान पिछोर से दो किमी पूर्व में चँदेरी माताटीला मार्ग पर प्राचीन ऐतिहासिक स्थान था ।
यहाँ परमार शासक भोज का शासन था। भोज परमार द्वारा यहाँ निर्मित शिव मंदिर एवं अन्य मंदिर अवलोकनीय है।
मानपुरा के पश्चिमी पार्श्व पीछे की पहाड़ी की तलहटी में एक पुरवा जैसी बस्ती थी। यह बस्ती पहाड़ के पश्चिम पार्श्व में निर्मित चंदेली तालाब के पीछे होने से पिछोर कहलाई।मानपुरा के पराभव के बाद पिछोर का अभ्युदय हुआ।
गढ़ कुंडार के राजा मलखान सिंह उसके पुत्र रुद्र प्रताप पौत्र भरतीचंद बुंदेला ने सिकंदर लोदी के बुंदेलखंड में बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए ओरछा के राज्य का विस्तार कछुआ ,पिछोर और शिवपुरी के क्षेत्र तक कर लिया।
मधुकर शाह ने भी बुंदेलखंड में अकबर की साम्राज्य बादी नीति का प्रतिरोध किया और मुगल सम्राट को बुंदेलखंड में बढ़ने से रोक दिया।
पिछोर दक्षिण के मार्ग में अच्छी सुरक्षा चौकी के रूप में था। मधुकर शाह ने अपने एक पुत्र हौरल देव को पिछोर की जागीर दी थी तथा पहाड़ी पर छोटा गढ़ी नुमा किला बना कर क्षेत्र की सुरक्षा ब्यबस्था का दायित्व सौंपा।
मराठो के आगमन के बाद सरदार पिला जी ने पिछोर को लूटा और आतंक उत्पन्न किया। सन 1746-47 में नारौ शंकर मराठा ने पिछोर सहित पूरी जागीर में ही है
लूट का आतंक उत्पन्न कर दिया ।
पानीपत के तृतीय युद्ध का लाभ उठाकर पिछोर के राजा ने कर देना बन्द कर दिया था। सन 1761 में नाना साहब ने पिछोर पर आक्रमण कर दिया। बाद में महादजी सिंधिया , दौलत राव सिंधिया, अम्बा जी इंग्ले तथा सिंधिया के फ्रेंच सेनापति जॉन बैप्टिस्ट ने भी इस क्षेत्र में बसूली की।
सन 1779 तक यह ओरछा के अधीन रहा,फिर झाँसी के सूबेदार के अधीन मराठों के क़ब्ज़े में आ गया।सन 1838 में इस पर अंग्रेजो का कब्जा हो गया किन्तु 3 वर्ष बाद फिर झाँसी के राजा को मिल गया।
सन 1854 में झांसी रियासत अंग्रेजो ने अपने अधीन ले ली तब यह फिर अंग्रेजो के अधीन हो गया। सन 1857 के ग़दर के समय झाँसी की रानी ने इस पर कब्जा कर लिया।
सन 1860 में इलाकों की तब्दीली के दौरान यह महाराजा सिंधिया को प्राप्त हुआ। ग्वालियर राज्य में पिछोर नरवर जिले के अंतर्गत परगना बना। तब चँदेरी भी पिछोर परगने का ही हिस्सा था।
परगने के हाकिम माल कस्मादार,नायब कस्मादार थे। इनके अधीन एक सब इंस्पेक्टर की मातहती में 205 जबान एक थाने तथा पाँच आउट पोस्ट पर तैनात थे। इस परगने में एक कस्वा चँदेरी तथा 303 गांव थे। सन 1901 में पिछोर की आबादी 3075 एवं चँदेरी की आबादी 4093 थी। इस प्रकार पिछोर का किला एवं परिक्षेत्र मराठा साम्राज्य का हिस्सा बन गया।