शिवपुरी। चेहरे पर झुर्रियां, आंखें भी डबडबाई हुई सी, जिंदगी के 76 बसंत देख चुके महाराणा प्रताप कॉलोनी निवासी कॉपरेटिव बैंक से रिटायर्ड केदारनाथ अब शिवपुरी के वृद्धाश्रम में जीवन के शेष दिन बिता रहे हैं। यकीनन वे यहां परिवार के ठुकराने के बाद ही पहुंचे हैं, लेकिन इस वृद्ध की आध्यात्मिक सोच और समाज के प्रति समर्पण देखिए वृद्धाश्रम में समाज के सहयोग से उनकी जो सेवा हो रही है।
उसके एवज में केदारनाथ ने अपनी मृत काया ही समाज हित के लिए दान कर दी है। बकायदा कानूनी रूप से उन्हें स्वीकृति भी मिल गई है। जीते जी समाज के लिए अपनी काया दान करने का केदार का फैसला उनकी मौत के बाद कई जरूरतमंद जिंदगियों का कायाकल्प करेगा। उन्होंने कुछ दिन पहले जिला जज अर्चना सिंह के समक्ष खुद की काया दान करने की इच्छा जाहिर की थी, जिसके बाद जिला जज ने मंगलम संस्था के सचिव राजेंद्र मजेजी के माध्यम से मृत्यु उपरांत देहदान के फॉर्म को पूरा करवा कर उसे मेडिकल कॉलेज के डीन को सौंप दिया।
स्वजनों से छीना अंतिम संस्कार का अधिकार
बताया जा रहा है कि केदारनाथ के देहदान का फॉर्म भरने से पहले इस संबंध में उनके परिवार वालों को भी बताया गया था, लेकिन परिवार वालों ने केदारनाथ के देहदान के फैसले का विरोध दर्ज कराया तो केदारनाथ ने स्पष्ट कर दिया कि वह घर त्याग चुके हैं। जब उनके बच्चों का इस जीवित देह पर अधिकार नहीं है तो मृत देह पर काहे का अधिकार। उन्होंने अपना पता वृद्धाश्रम शिवपुरी लिखवाते हुए आश्रम के सचिव राजेंद्र मजेजी की सहमति के साथ देह दान कर दिया।
दधीचि की हड्डियों से वज्र बना था, मेरी से बनेंगे डॉक्टर
जब मीडिया ने सोमवार को वृद्धाश्रम जाकर केदारनाथ वर्मा से देहदान का कारण पूछा तो उनका कहना था कि ऋषि दधीचि ने देवताओं की भलाई के लिए अपनी देह त्याग दी थी। उनकी हड्डियों से बने वज्र से इंद्र ने वृत्रासुर राक्षस का संहार किया था। बकौल केदारनाथ मृत देह जलने के बाद वह राख हो जाएगी और इसे पानी में बहा दिया जाएगा, लेकिन जब यह मृत देह दान कर दी जाएगी तो डॉक्टर इसके अच्छे का अंगों का उपयोग दूसरों की जिंदगी संवारने के लिए कर सकते हैं और शेष बची काया व हडृडियों प्रयोग करके मेडिकल के कई छात्र बड़े डॉक्टर बन सकते हैं, जो समाज के कई लोगों को जीवनदान देंगे। इसी भावना के चलते उन्होंने अपनी देह का दान पत्र लिख दिया है।