शिवपुरी। क़ृषि विज्ञान केन्द्र शिवपुरी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.एम.के. भार्गव ने बताया कि किसान भाई सिंचित सरसों की बुवाई नवंबर के प्रथम सप्ताह तक आवश्यक रूप से पूर्ण कर दें। मसूर की बुवाई भी सिंचित अवस्था में मध्य नवंबर तक की जा सकती है। बीज की मात्रा 40 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर क्षेत्र में पर्याप्त होती है। बुवाई से पूर्व बीजोपचार फफूंदनाशी से करें तथा इसके बाद जब उर्वरकों राइजोबियम एवं पी.एस.बी. कल्चतर से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम उपचारित कर थोड़ी देर छाया में सुखाकर बोनी करें।
मटर की मध्यम समयावधि एवं देर से आने वाली प्रजातियों की बुवाई भी मध्य नवंबर तक कर देना चाहिए। बीज दर 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर अनुकूल है। चने की बोनी भी 15 नवंबर तक कर दें। बुवाई पूर्व बीजोपचार थायरम एवं कार्बेन्डाजिम को 2:1 में मिलाकर या वीटावैक्स पॉवर से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से करे तत्पश्चात् बीज को राइजोबियम एवं पी.एस.बी कल्चर से प्रत्येक के 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें। बीज को छाया में सुखाकर बुबाई करें।
रबी की सभी दलहनी फसलों में सामान्यत पोषक तत्वों की पूर्ति नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश क्रमशरू 15-20 नत्रजन, 40 से 50 फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। जिसे 3 से 4 बैग एनपीके (12:32:16) या अन्य संयोजनों वाले उर्वरकों से देकर पूर्ति की जा सकती है। डी.ए.पी. से बेहतर विकल्प एन.पी.के. भी है जिनमें पोटाश तत्व भी मिल जाता है। गेहूं की बुवाई भूमि में पर्याप्त नमीं की दशा होने पर मध्य नवंबर तक करें। सिंचित दशा में पलेवा कर मध्य नवम्बर से नवम्बर अंत तक बोनी का उपयुक्त समय है। बुवाई के लिए बीज 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है।
लहसुन की बुवाई का उपयुक्त समय चल रहा है। इसकी बुवाई कलियों के द्वारा की जाती है। प्रत्येक कंद में औसतन 15-20 कलियां होती हैं। बुवाई के पूर्व कलियों को सावधानी पूर्ण अलग कर लें। परंतु ध्यान रखें कि कलियों के ऊपर की सफेद पतली झिल्ली को नुकसान न हो। एक हेक्टर के लिए लगभग 4.5 से 5 क्विंटल कलियों की आवश्यकता होती है। तैयार कियारियों में 10-15 से.मी. दूरी पर लाइन बना लें इन लाइनों से 8-10 से.मी. दूरी पर कलियों की बुवाई करें।
खाद एवं उर्वरक के लिए 15-20 टन प्रति हैक्टलर सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयार के समय मिला दें। इसके अलावा 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 30 कि.ग्रा. पोटाश एवं 60 कि.ग्रा. गंधक प्रति हैक्टर देना चाहिए। नाइट्रोजन की एक तिहाई तथा फास्फोरस पोटाश की मात्रा बुवाई के पूर्व दें। शेष नाइट्रोजन को दो बराबर हिस्सों में बुवाई के 20-25 एवं 40-45 दिन बाद देना लाभप्रद होता है।
आलू की मुख्य फसल की बुवाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवम्बर के द्वितीय सप्ताह तक की जा सकती है। बीज दर अंकुरित 40-45 ग्राम भार वाले कंदों को बीज के रूप में 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टर में आवश्यकता पड़ती है। बुबाई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 60 से.मी. व कंद से कंद की दूरी 20 से.मी. एवं गहराई 5-7 से.मी. पर करना चाहिए। आलू बीज को 3 प्रतिशत बोरिक एसिड से उपचारित करने के पश्चात बुवाई करना चाहिए।
आलू की अच्छी पैदावार के लिए 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर कम्पोस्ट का उपयोग काफी लाभप्रद होता है। नत्रजन 120 कि.ग्रा., स्फुर 80 एवं 100 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है। इसके बोनी के समय 500 ग्राम एजटोबेक्टर को 50 किलो सूखी गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से उपयोग करने पर अच्छी पैदावार होती है तथा 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर नत्रजन कम की जा सकती है। ध्यान दें आलू के कंद उर्वरक के सीधे संपर्क में न आवे।
रबी फसलों में संतुलित पोषण तत्व उपयोग के लिए एच.पी. के युक्त संयोजनों 12:32:16, 10:26:26 का उपयोग आधार खाद के रूप में फसलों के अनुसार गणना कर उपयोग करें। तिलहनी फसलों, सरसों, अलसी, कुसुम आदि के लिए 20:20:13 अमोनियम फास्फेट सल्फेट जैसे उर्वरकों को आधार खाद के रूप में उपयोग करें। यह पूर्व संयोजित उर्वरक डी.ए.पी. की तुलना में अधिक प्रभावशील एवं सस्ते भी हैं। उर्वरक पूर्ति यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट एवं पोटाश के समन्वय से की जा सकती है।
फसलों की बुवाई से पूर्व बीजोपचार जरूर करें जिसमें फफूंदनाशक दवा से उपचारित करने के उपरांत दलहनी फसलों को राइजोबियम कल्चर एवं अनाज वाली फसलों को एजोटोबेक्टर कल्चर तथा सभी फसलों के बीजों को पी.एस.बी (स्फूर घोलक जीवाणु) से एक पैकेट (250 ग्राम) 10 से 20 कि.ग्रा. बीज के लिए पर्याप्त होता है। 1 से 2 किलोग्राम जैव उर्वरक 50 किलोग्राम मिट्टी या कम्पोस्ट में मिलाकर मिश्रण तैयार कर बुबाई से पहले 1 एकड़ खेत में समान रूप से भुरक दें। जैव उर्वरकों के प्रयोग से उपज में 10-35 प्रतिशत की वृद्धि है तथा रासायनिक उर्वरकों की 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर मात्रा कम की जा सकती है।