मनोज भार्गव@ शिवपुरी। सैकडो सालो से मिटटी का मटका हम लोग पानी पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं,मटके के पानी को अमृत कहा जाता हैं। लेकिन इस बार गर्मियो में कोरोना के कारण गरीबो इस इस फ्रिज पर कोरोना का ग्रहण लग गया है। मटके का पानी अमृत होता हैं क्यो,और कौनसी ट्रिक है मिट्टी की जिससे कारण पानी ठंडा हो जाता है।
पिछले वर्ष भी मटको का कारोबार कम हुआ था लेकिन इस बार कोराना कफ्यू अप्रैल माह के बीच लग जाने से पूरा कारोबार प्रभावित हो गया। इन मटको को बनाने वाले कुम्हारो का कहना है कि इस बार पूरे सीजन मटका हमारे घरो ओर बाडो में कैद रहा बाजार में बिकने नही गया। मात्र 10 प्रतिशत ही ब्रिकी हुई है।
इस देशी फ्रिज की सबसे अधिक बिक्री चैत्र नवराात्रि में लगने वाला राजेश्वरी के मेले में होती हैं,लेकिन कोरोना के कारण इस बार भी मेला नही लगा इस कारण मटको की बिक्री नही हुई हैं।
मटके रखे हैं घरों में कहां जाकर बेचे
कुमहारों ने गर्मी के लिए पहले से ही मटके बनाकर रख लिए थे। बलारी के मेले सहित राजेश्वरी मंदिर के मेले में खासकर मिटटी के बर्तनों की बिक्री होती थी इसलिए मटके, कुल्ली, गुल्लक से लेकर गमले व अन्य सामान कुमहारों ने बनाकर रखा था लेकिन लॉकडाउन ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया।
घर घर बने रखे हैं मटके बाजार में नहीं लगने दे रहे दुकानें
कुमहारों का कहना है कि उन्होंने अपनी जमा पूंजी लगाकर मटके और अन्य मिटटी के बर्तन तैयार किए थे जिससे वह कुछ कमा सकेंगे लेकिन कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन ने उनका सारा बजट ही बिगाडकर रख दिया है। हजारों रूपए माल घर में पडा है। ऐसे में उसे कहां जाकर बेचे कुछ समझ नहीं आ रहा है। इतना ही नहीं उन्हें पुलिस वालो साइकिल पर रखकर भी सामान नहीं बेचने दे रहे हैं।
इसलिए अमृत कहा जाता हैं मटके के पानी को
मिट्टी की भीनी-भीनी खुशबू के कारण घड़े का पानी पीने का आनंद और इसका लाभ अलग है। मिट्टी में कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। मिट्टी में क्षारीय गुण विद्यमान होते है। क्षारीय पानी की अम्लता के साथ प्रभावित होकर,उचित पीएच संतुलन प्रदान करता है। इस पानी को पीने से एसिडिटी पर अंकुश लगाता हैं।
मटके का पानी बहुत अधिक ठंडा ना होने से वात नहीं बढाता, इसका पानी संतुष्टि देता है। मटके को रंगने के लिए गेरू का इस्तेमाल होता है जो गर्मी में शीतलता प्रदान करता हैं। मिटटी में शुद्धि करने का गुण होता है यह सभी विषैले पदार्थ सोख लेती है तथा पानी में सभी जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाती है।
इसमें पानी सही तापमान पर रहता है, ना बहुत अधिक ठंडा ना गर्म।रोज मटके का पानी पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी पॉवर) मजबूत होती हैं। मटके के पानी को ठंडा नही बल्कि शीतल कहते हैं।
कैसे ठंडा रहता है पानी,कौनसी ट्रीक हैं यह मिट्टी की
मिट्टी के बने मटके में सूक्ष्म छिद्र होते हैं। ये छिद्र इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। पानी का ठंडा होना वाष्पीकरण की क्रिया पर निर्भर करता है। जितना ज्यादा वाष्पीकरण होगा, उतना ही ज्यादा पानी भी ठंडा होगा। इन सूक्ष्म छिद्रों द्वारा मटके का पानी बाहर निकलता रहता है। गर्मी के कारण पानी वाष्प बन कर उड़ जाता है। वाष्प बनने के लिए गर्मी यह मटके के पानी से लेता है। इस पूरी प्रक्रिया में मटके का तापमान कम हो जाता है और पानी ठंडा रहता है।