अलविदा डॉ.मिश्रा: कर्मपथ जीवनग्रंथ बन गया, इस कारण हर जानने वाला आज रोया है

Bhopal Samachar
ललित मुदगल @ शिवपुरी। वैसे कोरोना काल में प्रतिदिन दु:खद खबरें मिल रही हैं, लेकिन आज सुबह शहर के हजारों लोगों के हद्धयघात सी देने वाली खबर मिली की डॉ. आनंद कुमार मिश्रा अब इस दुनिया में नही रहे, लाखों लोगों की बीमारियों को अपने इलाज से हराने वाले डॉ. मिश्रा कोरोना को नही हरा सके और बिरला हॉस्पिटल में उन्होने प्राण त्याग दिए।

पुरानी शिवपुरी में अपनी क्लीनिक संचालित करने वाले डॉ. एके मिश्रा पुरानी शिवपुरी क्षेत्र में एक लोकप्रिय और सम्मानीय व्यक्तित्व थे। मै पर्सनल तौर पर डॉ साहब से जुडा था। डॉ. मिश्रा की निधन की खबर मुझे, आज जब में पूजा कर रहा था, मैन फोन उठाए नही, देखा तक नही था किसका है, लेकिन जब मैने अपनी पूजा के बाद एक कॉल को रिर्टन किया तो उधर से एक रोती हुई महिला की आवाज आई। मैने पहचानने की कोशिश की, कि यह आवाज किसकी है तो उसने अपने परिचय दिया और कहा कि इस खबर में कितनी सच्चाई है कि डॉ ए के मिश्रा नही रहे, यह सुन में भी सुन्न हो गया। कि है, भगवान आज सुबह कैसी खबर तूने दी हैं।

यह फोन मेरे मित्र की पत्नी का था। मुझसे वैरीफाई करने के लिए लगाया गया था। मेरे मित्र की धर्मपत्नी डॉ मिश्रा से इलाज कराने जाती थी और वह डॉ मिश्रा को अपना बड़ा भाई समान मानती थी। डॉ मिश्रा थे ही ऐसे, वो केवल इलाज नहीं करते थे बल्कि अपने मरीजों के साथ परिवार जैसा रिश्ता बना लेते थे। 

मैं भी अपना इलाज कराने जाता था। वहीं से ही मेरा रिश्ता जुड़ा। वह हमेशा मुझ से कहते थे कि मुदगल शहर के हलातों के विषय में ऐसे ही लिखा करो और जब भी तुम एक्सरे लिखते हो तो मुझे ऐसा लगता है कि यह मैने लिखा है।

डॉ.मिश्रा एक अधिमान्य पत्रकार थे और शिवपुरी की व्यवस्थाओं को लेकर वह हमेशा लिखते रहते थे। दवाईयों के साथ साथ वह शिवपुरी के बडे मुद्दों पर वह हमेशा कलम चलाते रहते थे। डॉ.मिश्रा मूलरूप से जबलपुर के रहने वाले थे और वह अपने गुरू शिक्षाविद प्रोफेसर सिकरवार के सिद्धांतो पर चलने का प्रयास करते थे और यह सिंद्धात उनके क्लीनिक पर प्रतिदिन दिखता था, उनके क्लीनिक पर सैकडों लोग अपना इलाज कराने आते थे, उसमे से 70 प्रतिशत मरीज पुरानी शिवपुरी के गरीब लोग आते थे।

लगभग प्रतिदिन आने वाले आधे मरीजों से वह फीस नही लेते थे, ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले मरीजों से वह पूछ लेते थे कि इलाज कराने के बाद पैसा बचा है कि नही, खाना खाया कि नही, वापस कैसे जाऐगा, यह सवाल उनके अक्सर होते रहते थे। मैने कई मरीजों को दवा और पैसे देते उन्है देखा हैं।

वह अक्सर कहते थे कि भगवान इतना दे देता हैं कि मेरा परिवार का अच्छे से गुजरा हो जाता हैं, बस मरीजों की दुआएं मिलती रहीं काफी हैं। डॉ मिश्रा के लिए आज हर वह व्यक्ति रोया होगा जो उनसे परिचित था। उसका उदाहरण आज शहर की सोशल मीडिया पर दिखा, शहर के सैकड़ों लोगों ने उनको श्रद्धाजंलि पोस्ट की हैं और उसमें शहर का हर प्रकार का व्यक्ति था।

डॉ.मिश्रा अंग्रेजी विषय के अच्छे जानकार थे। वह शिक्षा के क्षेत्र भी कुछ करना चाहते थे और अपने गुरू शिक्षाविद सिकरवार साहब का काम आगे बढाना चाहते थे। इसलिए सेंट झेवियर्स स्कूल का भी संचालन करते थे। जिसमें गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है।

डॉ.मिश्रा मिश्रा शहर के ख्यातिनाम लोगों में शुमार थे और वह हमेशा समाजसेवा में अग्रणी रहते थे। वह व्यवहार कुशल होने के साथ-साथ लोगों की हर हद तक मदद करते थे,उनके दरवाजे से आज तक कोई भी खाली हाथ नही लोटा था, उनका एकदम से श्रीहरि के चरणो में चले जाना शहर को छति हैं। उनके जिने की कला,उनके कर्म और सिद्धांत एक ग्रंथ बन गया हैं।

उनका जो सबसे बड़ा आभूषण था वह दूसरों की मदद करना, अपने गुरू प्रोफेसर सिकरवार के सिद्धांतो पर चलना, बस इससे ज्यादा कलमवीर लिख नही सकता अब शब्दों में ताकत नही बची है कि उनके महान गुणों के विषय में और कुछ लिखा जाए। श्री मिश्रा का जाना मेरे लिए भी एक व्यक्तिगतरूप से छति हैं,ऐसा लगा कि मेरे परिवार का ही आज कोई चला गया होगा............श्रीहरि उन्हे अपने चरणो में स्थान दे