पोहरी और करैरा में दावेदारों की धडकनें तेज: सिंधियानिष्ठों के लिए आसान नहीं होगा उपचुनाव / Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। मध्यप्रदेश के सत्ता परिवर्तन में कांग्रेस के जिन 22 विधायकों ने इस्तीफा देकर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाई है। उनमें अब बैचेनी बढऩे लगी है। हालांकि देश और प्रदेश में अभी भी कोरोना का प्रकोप चल रहा है। लॉकडाउन समाप्त नहीं हुआ तथा प्रदेश में हालात उतने सामान्य नहीं है। जितनी संभावना थी और यह आशंका है कि शायद लॉकडाउन 4 की भी घोषणा हो जाए।

लेकिन इसके बाद भी प्रदेश की 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की चर्चा होने लगी है। इनमें शिवपुरी जिले की दो विधानसभा सीटें पोहरी और करैरा है। जहां कांग्रेस के जीते गए विधायकों सुरेश राठखेड़ा और जसवंत जाटव ने इस्तीफा दिया था। दोनों ही पूर्व विधायक सिंधिया खैमे के हैं और सिंधिया के साथ ही भाजपा में शामिल हुए हैं।

उपचुनाव में हालांकि यह संभावना नजर आ रही है कि इस्तीफा देने वाले पोहरी के पूर्व विधायक सुरेश राठखेड़ा और करैरा के पूर्व विधायक जसवंत जाटव भाजपा के उम्मीदवार होंगे। लेकिन इसके बाद भी कहीं न कहीं उनके भीतर बैचेनी है। यह इसलिए भी कि प्रदेश में भाजपा की ओर से कौन उम्मीदवार जीत सकता है। इसका सर्वे भी हो गया।

एक पूर्व विधायक ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब पहले से ही तय हो गया था कि इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव में उन्हें ही उम्मीदवार बनाया जाएगा तो फिर सर्वे का क्या अर्थ है। पोहरी की बात करें तो यहां से भाजपा से सुरेश राठखेडा अपना टिकिट फायनल मान रहे है। परंतु भाजपा का जो सर्वे हुआ है उसमें राठखेडा की स्थिति ठीक नहीं मिली। जिससे संगठन टिकिट को लेकर अपना अलग आंकडा विठा सकता है।

पोहरी विधानसभा में हमेशा से ही जातिगत समीकरण बैठते आए है। जिसमें अब भाजपा से टिकिट की दाबेदारी दिखा रहे पूर्व विधायक सुरेश राठखेडा धाकड समुदाय से आते है। अब भाजपा की सरकार है तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इस सीट पर अपना पूरा दम लगाएगें। परंतु दूसरी और कांग्रेस से विधायक बने सुरेश राठखेडा को यादव समुदाय के चलते जीत हासिल हुई थी। परंतु लोकसभा चुनाब में अशोक यादव की हार के बाद से यहां यादव समुदाय की भी नाराजगी सामने आ सकती है।

इस दौरान कांग्रेस से पूर्व विधायक ब्राहम्ण बोटरों के सहारे टिकिट की जुगत में है। वह ब्राहृमण समुदाय को साधकर बोट हासिल करने के प्रयास के चलते अपनी जमींनी तैयारी में जुटे हुए है। परंतु दोनों ही पार्टीयों को सबसे ज्यादा प्रभावित यहां हाथी यानी बसपा का बोट बैंक करेंगा। यहां सुरेश राठखेडा को बसपा प्रत्याशी कैलाश कुशवाह ने जमकर टक्कर दी थी। महज 7 हजार मतों के अंतर से सुरेश राठखेडा चुनाव जीते थे। परंतु उपचुनाव में बसपा अपने प्रत्याशी नहीं उतारती। जिसके चलते अब कांग्रेस कैलाश कुशवाह पर भी दावेदारी खेल सकती है। अगर यह दाबेदारी खेली तो यहां फिर से मुकाबला दिलचस्प होगा।

2018 का विधानसभा चुनाव  जीतने के बाद पोहरी विधायक सुरेश राठखेड़ा और करैरा विधायक जसवंत जाटव एक साल तक अपने पद पर रहे। लेकिन उसके बाद सिंधिया के समर्थन में दोनों विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था। परंतु एक साल में जनता की उनके विषय में क्या प्रतिक्रिया रही। उनकी जनता में छवि कैसी रही। यह भी उपचुनाव में एक बड़ा सवाल है, जिसका जबाव भाजपा के संभावित उम्मीदवार सुरेश राठखेड़ा और जसवंत जाटव को देना होगा।

जहां तक करैरा के पूर्व विधायक जसवंत जाटव का सवाल है, जीतने के बाद उनकी कार्यप्रणाली और व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया था। उन पर जनता के प्रति अभद्र व्यवहार और खदाने चलाने का आरोप लगा था। यह भी चर्चा होने लगी थी कि खदानों के अवैध चलन मेंं उनका संरक्षण हैे। जिस तरह से अहंकार उनके सिर चढक़र बोल रहा था ।

उससे उपचुनाव में यदि वह भाजपा उम्मीदवार बनते हैं तो उनके लिए एक परेशानी का कारण होगा। यहीं कारण है कि कांग्रेस टिकट की आशा में कई सिंधिया समर्थकों ने अभी कांग्रेस नहीं छोड़ी है। इनमें पूर्व विधायक शंकुतला खटीक, दिनेश परिहार और मानसिंह फौजी भी है। 2018 के चुनाव में बसपा उम्मीदवार के रूप मेें लड़े प्रागीलाल जाटव ने भी जमकर किला लड़ाया था और लड़ाई में वह दूसरे स्थान पर रहे थे।

लेकिन बताया जाता है कि उपचुनाव में बसपा भाग नहीं लेती है। इस कारण प्रागीलाल कांग्रेस टिकट की जुगाड़ में भी नजर आ रहे हैं। 2018 के चुनाव में भाजपा से टिकट न मिलने पर पूर्व विधायक रमेश खटीक ने भी पार्टी छोड़ दी थी। लेकिन बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए। परंतु उनके कुछ समर्थक चाहते हैं कि रमेश खटीक कांग्रेस से चुनाव लड़े और यदि ऐसा हुआ तो वह जसवंत जाटव के दांत खट्टे कर सकते हैं।

इन सब कारणों से सूत्रों के अनुसार सिंधिया आशंकित हैं और शायद इसलिए करैरा में भाजपा उम्मीदवार को लेकर सर्वे कराया जा रहा है। जहां तक सुरेश राठखेड़ा का सवाल है उनकी सबसे बड़ी ताकत यह है कि वह किरार समुदाय से हैं। लेकिन 2018 के चुनाव में उन्हें उनके सजातीय किरार मतों का समर्थन नहीं मिला था

जबकि इस बार ऐसा संभव नजर नहीं आ रहा है। लॉकडाउन के दौरान उनके पुत्र की एसडीओपी से हुई झड़प और इसके बाद एसडीओपी से उनका बार्तालाप वायरल हो जाने से कहीं न कहीं उनकी छवि पर भी सवाल खड़ा हुआ था। परंतु इसके बाद भी दोनों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के पक्ष में मुख्य बात यह है कि प्रदेश और देश में भाजपा की सत्ता है। इस कारण मतदाताओं की मानसिकता सत्ता पक्ष के साथ जाने की रह सकती है।