शिवपुरी। कोरोना काल में ही चुनाव की सुगबुहाट शुरू हो गई। जिले में करैरा और पोहरी में उपचुनाव होने हैं। माना जा रहा हैं कि भाजपा में कांग्रेस से आए दोनो नेताओ को टिकिट मिलेगा। लेकिन सवाल यह बनता हैं कि भाजपा के नेता इनके लिए कैसे वोट मांगेगें जो पिछले चुनाव में खिलाफ चुनाव लडे थे लेकिन बताया जा रहा हैं कि भाजपा में चुनाव की तैयारियो से पूर्व एडजस्ट मोड पर आऐगी।
यह तय माना जा रहा है कि करैरा और पोहरी में जिन भाजपा उम्मीदवारों ने 2018 में पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ा था उन्हें टिकट नहीं मिलेगा। बल्कि इसके स्थान पर कांगे्रस उम्मीदवार के रूप में जीते जसवंत जाटव और सुरेश राठखेड़ा को टिकट मिलेगा। इससे पिछले चुनाव में पराजित उम्मीदवारों सहित टिकट के अन्य दावेदारों में कसमसाहट है। ऐसे बेचैन भाजपा नेताओं पर कांग्रेस नजर रख रही है।
हालांकि इस स्थिति का भाजपा हल निकालने का प्रयास कर रही है और दावेदारों को संतुष्ट करने में लगी है। यहीं कारण है कि इंदौर जिले के सांवेर विधानसभा क्षेत्र में 2018 का चुनाव भाजपा उम्मीदवार के रूप में लड़े और उस समय के कांग्रेस उम्मीदवार रहे तुलसी सिलावट से पराजित होने वाले राजेश सोनकर को इंदौर ग्रामीण का जिलाध्यक्ष बनाकर संगठन में एडजस्ट किया गया है।
देखना यह है कि करैरा और पोहरी में टिकट के दावेदार भाजपा नेताओं को किस तरह से एडजस्ट किया जा सकता है। ताकि विद्रोह और भगावत की स्थिति पैदा न हो।
कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के भाजपा में शामिल होने और शिवराज सरकार बनने के बाद इस्तीफा देने वाले उन विधायकों का चुनाव लडऩा निश्चित माना जा रहा है और सभी को भाजपा से टिकट मिलेगा। यह स्थिति देखते हुए सभी 22 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़े भाजपा नेता अपने-अपने भविष्य को लेकर आशंकित नजर आ रहे हैं।
इसमेेंं जयभान सिंह पवैया से लेकर बृजमोहन किरार, मुदित शेजवार, राजकुमार खटीक और प्रहलाद भारती शामिल हैं। उनके लिए समस्या यह है कि डेढ़ साल पहले उन्होंने जिस उम्मीदवार को हराने के लिए पूरी ताकत झौंक दी थी अब उन्हीं के लिए वोट मांगना पड़ेगा और ऐसी स्थिति में वह कैसे मतदाता के पास जाएंगे। इन नेताओं की महत्वाकांक्षा भी जोर पकड़ सकती है।
क्यों कि नए समीकरण में अपने विधानसभा क्षेत्र में कैसे वह सत्ता की राजनीति कर पाएंगे। इस स्थिति को देखकर कांग्रेस उन भाजपा नेताओं पर दाव लगा सकती है जो 2018 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर सिंधिया समर्थक कांग्रेस नेताओं से विधानसभा चुनाव हारे थे। इस रणनीति से कांग्रेस कांटे से कांटा निकालने की तैयारी में है।
इस्तीफा देने वाले विधायकों का इस्तीफा भी सहज नहीं माना जा रहा और मतदाताओं के मन में कहीं न कहीं यह बात है कि इस्तीफा उन्होंने किसी नीति के आधार पर नहीं बल्कि लालच के वशीभूत होकर दिया है। कल तक जिस पार्टी को इस्तीफा देने वाले विधायक साम्प्रादायिक कहकर कोशते थे आज उसी के टिकट पर वह चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। इस स्थिति से भाजपा कैसे निपटती है यह भी एक बड़ा सवाल है।