शिवपुरी। अमर वीर महाराणा प्रताप की जयंती के अवसर पर उनकी वीरता और संघर्षगाथा को याद करते हुए भारतीय जनता युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष मुकेश सिंह चौहान के नेतृत्व में युवा मोर्चा द्वारा उन्हें नमन किया। झांसी तिराहे स्थित वीर तात्याटोपे प्रतिमा स्थल पर पहुंचकर उन्हें पुष्प अर्पित करते हुए श्रद्धासुमन अर्पित किए गए।
इस मौके पर महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए मुकेश सिंह चौहान ने कहा कि यूं तो राजस्थान की तेजस्वी व ओजस्वी, जप-तप, धर्म-कर्म गुणों से परिपूर्ण माटी में कई वीर-वीरांगनाओं ने जन्म लेकर इसका रुतबा ऊंचा किया है, लेकिन महाराणा प्रताप उन चुनिंदा शासकों में से एक हैं जिनकी वीरता, शौर्य-पराक्रम के किस्से और गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
अमर राष्ट्रनायक, दृढ़ प्रतिज्ञ और स्वाधीनता के लिए जीवन भर मुगलों से मुकाबला करने वाले साहसिक रणबांकुर महाराणा प्रताप को जंगल-जंगल भटक कर घास की रोटी खाना मंजूर था, लेकिन किसी भी परिस्थिति व प्रलोभन में अकबर की अधीनता को स्वीकार करना कतई मंजूर नहीं था। श्री चौहान ने बताया कि 9 मई, 1540 ईसवी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में पिता उदयसिंह की 33वीं संतान और माता जयवंताबाई की कोख से जन्मे मेवाड़ मुकुट-मणि महाराणा प्रताप जिन्हें बचपन में कीका कहकर संबोधित किया जाता।
जो अपनी निडर प्रवृत्ति, अनुशासन-प्रियता और निष्ठा, कुशल नेतृत्व क्षमता, बुजुर्गों व महिलाओं के प्रति विशेष सम्मानजनक दृष्टिकोण, ऊंच-नीच की भावनाओं से रहित, निहत्थे पर वार नहीं करने वाले, शस्त्र व शास्त्र दोनों में पारंगत एवं छापामार युद्ध कला में निपुण व उसके जनक थे। महाराणा प्रताप कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ, मानसिक व शारीरिक क्षमता में अद्वितीय थे।
उनकी लंबाई 7 फीट और वजन 110 किलोग्राम था तथा वे 72 किलो के छाती कवच, 81 किलो के भाले, 208 किलो की दो वजनदार तलवारों को लेकर चलते थे। उनके पास उस समय का सर्वश्रेष्ठ घोड़ा चेतक था, जिसने अंतिम समय में जब महाराणा प्रताप के पीछे मुगल सेना पड़ी थी तब अपनी पीठ पर लांघकर 26 फीट ऊंची छलांग लगाकर नाला पार कराया और वीरगति को प्राप्त हुआ। जबकि इस नाले को मुगल घुड़सवार पार नहीं कर सकें। इस मौके पर अन्य लोगों ने भी महाराणा प्रताप को श्रद्धासुमन अर्पित किए।
इस मौके पर महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए मुकेश सिंह चौहान ने कहा कि यूं तो राजस्थान की तेजस्वी व ओजस्वी, जप-तप, धर्म-कर्म गुणों से परिपूर्ण माटी में कई वीर-वीरांगनाओं ने जन्म लेकर इसका रुतबा ऊंचा किया है, लेकिन महाराणा प्रताप उन चुनिंदा शासकों में से एक हैं जिनकी वीरता, शौर्य-पराक्रम के किस्से और गौरवमयी संघर्ष गाथा को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
अमर राष्ट्रनायक, दृढ़ प्रतिज्ञ और स्वाधीनता के लिए जीवन भर मुगलों से मुकाबला करने वाले साहसिक रणबांकुर महाराणा प्रताप को जंगल-जंगल भटक कर घास की रोटी खाना मंजूर था, लेकिन किसी भी परिस्थिति व प्रलोभन में अकबर की अधीनता को स्वीकार करना कतई मंजूर नहीं था। श्री चौहान ने बताया कि 9 मई, 1540 ईसवी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में पिता उदयसिंह की 33वीं संतान और माता जयवंताबाई की कोख से जन्मे मेवाड़ मुकुट-मणि महाराणा प्रताप जिन्हें बचपन में कीका कहकर संबोधित किया जाता।
जो अपनी निडर प्रवृत्ति, अनुशासन-प्रियता और निष्ठा, कुशल नेतृत्व क्षमता, बुजुर्गों व महिलाओं के प्रति विशेष सम्मानजनक दृष्टिकोण, ऊंच-नीच की भावनाओं से रहित, निहत्थे पर वार नहीं करने वाले, शस्त्र व शास्त्र दोनों में पारंगत एवं छापामार युद्ध कला में निपुण व उसके जनक थे। महाराणा प्रताप कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ, मानसिक व शारीरिक क्षमता में अद्वितीय थे।
उनकी लंबाई 7 फीट और वजन 110 किलोग्राम था तथा वे 72 किलो के छाती कवच, 81 किलो के भाले, 208 किलो की दो वजनदार तलवारों को लेकर चलते थे। उनके पास उस समय का सर्वश्रेष्ठ घोड़ा चेतक था, जिसने अंतिम समय में जब महाराणा प्रताप के पीछे मुगल सेना पड़ी थी तब अपनी पीठ पर लांघकर 26 फीट ऊंची छलांग लगाकर नाला पार कराया और वीरगति को प्राप्त हुआ। जबकि इस नाले को मुगल घुड़सवार पार नहीं कर सकें। इस मौके पर अन्य लोगों ने भी महाराणा प्रताप को श्रद्धासुमन अर्पित किए।