1100 किलोमीटर लडी, लेकिन घर पहुचने से 70 km पहले दम तोड गई जिंदगी

Bhopal Samachar

शिवपुरी। लॉकडाउन के बाद शटडाउन होने के कारण लाखो जिंदगी रोड पर पैदल ही आ गई। मजदूर के हाथ बेरोजगार होने के बाद वे अपने घरो के लिए निकल पडे। ऐसे ही एक जिंदगी अपने घर जाने के लिए 1100 किलोमीटर लडी लेकिन घर पहुंचने से पूर्व 70 किलोमीटर पहले दम तोड गई।

लॉकडाउन के कारण शटडाउन स्वत: हो गया। मजदूरो के हाथ खाली हो गए। मुरैना जिले के सबलगढ से काम की तलाश में महाराष्ट्र के शहर पूणे मे जीवनलाल (32) पुत्र लालपत प्रजापति निवासी ग्राम जावरोल तहसील सबलगढ़ जिला मुरैना अपनी पत्नि रोहिणाी,बेटा कार्तिक उम्र 6 साल दूसरा बेटा मोहित उम्र 3 साल अस्थाई रूप से जा बसे। जीवनलाल प्रजापति पूणे में टाईल्स लगाने का कार्य करता था।

बताया गया हैं कि लॉकडाउन के कारण बेरोजगार होकर पर बैठे जीवनलाल ने लॉकडाउन खुलने की उम्मीद में 2 लॉकडाउन काट लिए,लेकिन जैसे ही तीसरे लॉकडाउन की घोषणा हुई तो उसकी उम्मीद हार गई। पैसे भी खत्म होने लगे थे। परदेश में जीवन केसे कटेगा यह सोचकर उसके परिवार ने पूणे से अपने घर आने का प्लान बनाया।

5 मई को जीवनलाल अपनी पत्नि रोहिणी और दोनो बच्चो के साथ बाईक से अपने घर सबलगढ की ओर निकल दिया। इस बाईक पर बैठे 4 लोगो ने 1100 किलोमीटर चलकर कई शहर क्रोस किए,सिर्फ कैसे भी अपने गांव पहुचें। लेकिन बैराड से 2 किमी से पहले ही यह जिदंगी हार गईं। जीवनलाल की हादसे में मौत हो गई।

बताया जा रहा हैं कि 5 मई को पूणे से चला यह परिवार 7 मई को शिवपुरी पहुंच गया था। इतने लम्बे सफर के बाद शिवपुरी पहुचने पर घर पास ही दिखने लगा था। 7 मई की रात 8.30 बजे बैराड़ से 2 किमी पहले जीवनलाल का प्यास लगी, यहां वह पानी पीने के लिए बाइक रोककर खड़ा हुआ, तभी एक युवक तेजी एवं लापरवाही से बाइक चलाते हुए आया और जीवनलाल को टक्कर मार दी। हादसे में जीवनलाल गंभीर रूप से घायल हो गया।

पुणे से उसके साथ आए तीन-चार अन्य बाइक सवार साथी उसे जिला अस्पताल लेकर आ गए लेकिन डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। घटना स्थल से मृतक जीवनलाल का गांव करीब 70 किमी दूरी पर रह गया था। घर पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गई।

जीवनलाल के साथ ही पुणे से लौट रहे (रिश्ते में जीजा) ज्ञानसिंह प्रजापति निवासी जवेरा ने बताया कि वे पुणे में टाइल्स बिछाने का काम करते थे। लॉक डाउन खुलने के इंतजार में सारा राशन खत्म हो गया। थोड़े बहुत पैसे बचे तो पेट्रोल भरवाकर पत्नी-बच्चों को लेकर घर लौटना ही बेहतर समझा। हताश होकर ज्ञानसिंह ने कहा कि भूखों मरने से बेहतर है, फिर चाहे रास्ते में मरना लिखा है तो मर जाएंगे। उन्होंने बताया कि 5 मई की शाम पुणे से निकले थे।