बस कलैंडर बदला हैं चुनोतिया वही है जिले की, अब 2020 से उम्मीद हैं कि हटे ये कंलक

Bhopal Samachar
शिवपुरी। समय 2019 को धक्का देकर 2020 में प्रवेश कर गया हैं,नए बर्ष की शुभकामनाए संदेश शिवपुरी की फिजाओ में घूम रहे हैं। वैसे तो कलैंडर बदला हैं,जिले की चुनौतिया की नही बदली हैं,अब 2020 से उम्मीद हैं कि जिले से यह कंलक मिट जाए।

शिवपुरी के प्यासे कंठो की लाईफ लाईन बनी सिंध जलावर्धन योजना पिछले 11 साल से अपनी पूर्णता को लेकर संघर्ष कर रही हैं। यह योजना 2008 में मजूंर हुई थी,जब इसका बजट 58 करोड था। इस योजना को पूर्ण करने का टारगेट 2 वर्ष था,लेकिन इस योजना को 11 साल बीत गए और योजना की लागत बढते—बढते 114 करोड की हो गई।

लेकिन यह योजना आज तक पूर्ण नही हुई,इस योजना को लेकर जनता सडको पर आई चौराहे पर तंबू गाढकर बैठना पडा,योजना को अपनी पूर्णता को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाना पडा। इस योजना ने अपने 11 साल के सफर में कई उतार चढाव देखने हैं सबसे बडी बात यह हैं कि योजना शुरू होने से पूर्व ही इसके पाईप बदलने पडे,अब इस पर काम करने वाली कंपनी को भी बदलना पडा।

यह योजना अब वरदान से अधिक जिले के काम करने के तरिके को लेकर जिले के शासन प्रशासन पर कंलक साबित हो रही हैं। ओर यह योजना यह भी सिद्ध कर रही हैं कि पिछले 11 साल में शिवपुरी को लूटने वाले अफसर ही शिवपुरी में आए जनप्रतिनिधिया ने केवल इस योजना पर भाषण और प्रेस नोट ही जारी किए हैं। दिल से इस योजना पर काम करने कोेई तैयारी नही हुआ हैं। यह योजना शिवुपरी के विकास की गति पर एक कंलक साबित हो रही हैं।


सन 2009 में शहर को सीवर की सौगात मिली। इस योजना की जब लगात 62 करोड थी,अभी भी इस योजना का काम अधुरा हैं। सिंध जलावर्धन योजना और इस योजना में एक समानता हैं,इन दोनो योजना को धरातल उतारने से पूर्व पूरा प्लान नही बनाया गया। किसी भी प्रकार की एनओसी नही ली गई। सिंध और सीवर योजना अवरूद्ध होने में फोरेस्ट की एनओसी न लेना सबसे बडा कारण रहा हैं। योजनाओ का प्लान बनाते समय यह निर्धारण नही था कि फोरेस्ट से एनओसी लेनी पडेंगी।

सीवर योजना में वर्तमान में घसारई तालाब के पास एक ट्रीटमेंट प्लांट बनाया गया हैं। इसी ट्रीटमेंट प्लांट में शहर का सीवर पहुंचेगा,लेकिन यहां तक जो मेन लाईन बिछाना हैं,वह अब भी दो किमी इलाके में नही बिछ सकी। नेशनल पार्क से लंबे समय के बाद खुदाई की परमिशन मिली हैं। अब नियम शर्तो का अंडगा काम रोककर खडा हो गया हैं। नेशनल पार्क प्रबंधन ने सैलिंग क्लव के पास रात में काम नही करने पर प्रतिबंध लगा दिया हैं।

इस जगह खुदाई होनी है जमीन में पत्थर है मशीने काम नही कर पा रही हैं पार्क प्रबंधन ने ब्लास्टिंग करने पर रोक लगा दी हैं। पीएचई अब नए सिरे से परमिशन लेने की कवायद शुरू कर दी हैं।

सीवर योजना की सफलता के लिए शहर में सिंध का पानी आवश्यक हैं। शहर में बिछाई गई सीवर की लाईन सीबर को बहाकर 9 किली दूर ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाऐगी। इसके लिए प्रति परिवार 500 लीटर पानी की आवश्यकता होगी,इस योजना में शहर के लगभग 35 हजार मकान कनेक्ट होने का अनुमान हैं। अगर वर्तमान की बात करे तो शहर के कई परिवार ऐसे है जिनके घरो की टोटिंयो में पानी नही आता हैं प्राइवेट टैंकर या अपने किसी दूसरे संसाधन से वे अपने जरूरत के पानी की व्यवस्था करते हैं ऐसे में सिंध से पानी नही आता हैं तो सीवर एक समस्या बन जाऐगी।

सीवर प्रोजेक्ट शहर की सडको के लिए भस्मासुर का बन गया था। सीवर प्रोजेक्ट के तहत सडके खोदी गई। इस प्रोजेक्ट में नियम बनाया था कि सीवर प्रोजेक्ट के लिए जितनी सडक खुदेंगी उतनी सीवर प्रोजेक्ट पर काम करने वाली कंपनी तत्काल सडक का निर्माण करेंगी।

लेकिन ऐसा नही हुआ खोदी गई सडको को बनाया नही गया,केवल भरा गयाा इतना ही नही उसमे से पत्थर ओर बोल्डरो बेच दिया गया। लगातार सडको के खोदने के कारण शहर में धुल के बादल बन गए। इनके निर्माण में सीवर की लागत से कई गुना बजट इन सडको के निर्माण में लग गया। अभी भी शहर में सैकडो गली मोहल्ले की सडको को बनाना शेष हैं।

कुल मिलाकर यह प्रोजेक्ट शहर के लिए दुखदाई ही रहा हैं। अब घरो के कनेक्शन करने के लिए फिर नई सडको को खोदा जाऐगा। ऐसे ही सिंध के लाईनो को बिछाने के लिए सडको की खुदाई होगी। नए साल का आगाज हो चुका हैं अब देखते हैं इस वर्ष में इन दोनो योजनाओ का क्या होता हैं।