शिवपुरी। आज से 6 वर्ष पूर्व 2013 में धरती का स्वर्ग और देवों की भूमि कही जाने वाले उत्तराखंड राज्य में प्राकृतिक आपदा का ऐसा कहर बरपा था कि उत्तराखंड के साथ साथ दिल्ली, उत्तरप्रदेश सहित कई राज्य इसकी चपेट में आए थे और इस आपदा ने हजारों यात्रियों की जान ले ली थी। साथ ही कई लोग अपने परिवारों से बिछड़ गए थे। प्राकृतिक आपदा के प्रकोप से देवभूमि केदारनाथ भी नहीं बच सकी थी, लेकिन ईश्वरीय चमत्कार से केदारनाथ के मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ था।
इस आपदा को अब 6 वर्ष बीत गए हैं और चार धाम यात्रा अब नई इबारत लिख रही है। चारधाम यात्रा में परिदृश्य पूरी तरह बदला हुआ है। प्रतीत होता है मानो आपदा के जख्म पूरी तरह भर गए हैं। व्यापारियों के साथ ही तीर्थ पुरोहितों और स्थानीय लोगों के चेहरों पर मुस्कान आ गई है। वहीं यात्री भी अब पूरे उत्साह और उमंग के साथ चार धाम यात्रा के लिए पहुंच रहे हैं।
हमारी परिवार सहित 18 दिन की इस धार्मिक यात्रा में हमने देवभूमि के हर एक उस स्थान को देखा जिसकी चर्चा हम सिर्फ लोगों के मुंह से या समाचारों में ही सुनते थे और इस 18 दिन की धार्मिक यात्रा में हमने 8 दिन बद्रीनाथ में व्यतीत किए। जहां भगवान विष्णु के निवास स्थान पर आयोजित भागवत कथा का श्रवणपान किया और देवभूमि का मर्म जाना। आईए हम आपको इस यात्रा के हर एक पड़ाव पर ले चलते हैं जहां वास्तव में स्वर्ग जैसी अनुभूति होती है और उत्तराखंड का हर एक कण कण में ईश्वर से साक्षात्कार कराता है।
चार धाम यात्रा का लें अद्भुत आनंद
हिंदुओं की आस्था का केंद्र उत्तर भारत देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है यहां वेद, पुराण और धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि उत्तर भारत में देवताओं का वास है। यहां बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री क्षेत्र हैं जिनके दर्शन कर चार धाम यात्रा पूरी की जाती है। शिवपुरी से सपरिवार यात्रा हमने 14 सितम्बर को प्रारंभ की और ग्वालियर से हमारे अन्य रिश्तेदार और परिवार के सदस्य इस यात्रा में शामिल हुए।
जहां हम सभी कार से दिल्ली होते हुए हरिद्वार पहुंचे। यह हमारा पहला पड़ाव था। चूंकि बद्रीनाथ में 16 सितम्बर से भागवत कथा का आयोजन होना था। इसलिए समय की कमी के चलते हमने हरिद्वार में एक दिन ही बिताया और 15 सितम्बर को हम बद्रीनाथ पहुंच गए। जहां 16 सितम्बर कलश यात्रा के साथ श्रीमद भागवत कथा का प्रारंभ हुआ।
कथा के मुख्य यजमान हमारे समधी लक्ष्मीनारायण शिवहरे एवं हरिमोहन शिवहरे ग्वालियर वाले थे। 7 दिनों तक हमने श्रीमद भागवत कथा का रसापान किया और इस पवित्र भूमि पर भागवत कथा का श्रवण कर हम अपने आपको अत्यधिक भाग्यशाली मानते हैं। कथा का वाचन आचार्य पं. राजनारायण मिश्रा के श्रीमुख से किया गया। जिन्होंने कथा के हर एक महत्व को सविस्तार बताया। भागवत कथा का लेखन कार्य भी देवभूमि उत्तराखंड में किया गया।
इससे भागवत कथा सुनने का महत्व भी बढ़ गया। ऋषि वेदव्यास ने भागवत कथा का अपने श्रीमुख से वाचन किया था और स्वयं भगवान गणेश ने अपने श्री हाथों से इस कथा का लेखन कार्य किया था। यह स्थान बद्रीनाथ से 3 किमी दूर आज भी स्थित है और इस स्थान को ऋषि वेदव्यास गुफा के नाम से जाना जाता है और इस स्थान पर भगवान गणेश का भी मंदिर है। इस क्षेत्र को माढ़ा गांव के नाम से जाना जाता है और यह भारत का आखिरी गांव है।
यात्रा के दौरान हमने इस गांव का भी भ्रमण किया और भारत की आखिरी चाय की दुकान पर चाय पीकर हमने अपना समय व्यतीत किया। मेरे साथ मेरी धर्मपत्नि ऊषा शिवहरे, हमारे समधी एवं समधन कमला देवी लक्ष्मीणनारायण शिवहरे, नगर पंचायत कोलारस के अध्यक्ष रविंद्र शिवहरे उनकी धर्मपत्नि निशा शिवहरे, श्रीमति सुनीता लालजी शिवहरे, श्रीमति संतोषी बालगोविंद शिवहरे, श्रीमति संध्या हरिमोहन शिवहरे, श्रीमति मीरा सुरेशचंद्र शिवहरे, श्रीमति ऊर्मिला प्रेमनारायण शिवहरे, श्रीमति गायत्री धर्मेंद्र शिवहरे, श्रीमति दीप्ती श्याम सिंह सोलंकी, पं. नंदकिशोर शर्मा, मांगीलाल शिवहरे, पीयूष शिवहरे, निशांत जायसवाल, सहित 45 लोगों का दल मौजूद था।
माढ़ा गांव की यात्रा के पश्चात हम वापस बद्रीनाथ पहुंचे और 22 सितम्बर को सुदामा चरित्र के साथ कथा संपन्न हुई और 23 सितम्बर को भण्डारे के साथ हमारी पहले धाम बद्रीनाथ की यात्रा संपन्न हुई।
प्राकृतिक आपदा में भी सुरक्षित रहा भगवान शिव का धाम
इसके बाद हम दूसरे धाम केदारनाथ को रवाना हुए। इस यात्रा में हमने तीन दिन उस स्थान पर व्यतीत किए जो भगवान शिव का निवास स्थान है और इस स्थान के उस चमत्कार को भी देखा जो वर्ष 2013 में आपदा के बाद पूरा क्षेत्र बर्बाद होने के बाद भी भगवान शिव का धाम सुरक्षित रहा। यात्रा हमने हैलिकॉप्टर से की। यहां हमने उस शिला का भी दर्शन किया जिस शिला ने आपदा के दौरान केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा की। आपदा को 6 वर्ष बीत चुके हैं और अब नए केदारनाथ के रूप में इस स्थान को पुन: विकसित किया जा रहा है। 6 वर्ष पुराने वह जख्म अब पूर्ण रूप से भर चुके हैं। हालांकि कई स्थानों पर अभी भी आपदा के प्रमाण देखे जा सकते हैं। तीन दिन हमने मंदिर के पास हमारे कुल के पण्डा की धर्मशाला में व्यतीत किए।
शानदार मौसम से स्वर्ग में रहने का हुआ आभास
यात्रा के इन तीन दिनों में हमने बारिश से भी सामना किया और बर्फबारी का भी लुफ्त उठाया। इस दौरान हमने प्राकृतिक छटाओं का भी अवलोकन किया। इन तीन दिनों में हमें ऐसा आभास हुआ कि हम स्वर्ग में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इस रमणीक स्थान से लौटने का हमारा कतई मन नहीं हो रहा था, लेकिन सांसरिक जीवन हमें वहां रूकने की अनुमति नहीं दे रहा था। चूंकि हमारे पास समय भी कम था और हमें तय समय में अपनी चार धाम की यात्रा पूरी करनी थी। इसलिए हम वहां से हैलिकॉप्टर से निकले और शेरशी हैलिपेड पर लैंड हुए।
त्रियुगीनारायण मंदिर जहां हुआ था भगवान शंकर और पार्वती का विवाह
इसके बार हमारी कार से यात्रा शुरू हुई। जहां सीतापुर के पास त्रियुगीनारायण मंदिर पहुंचे। इस स्थान पर भगवान शंकर और पार्वती का विवाह हुआ था। जहां भगवान विष्णु, ब्रह्मा सहित सभी देवी देवता उपस्थित होकर विवाह में शामिल हुए थे। इस स्थान पर आज भी वह वेदी प्रज्जवलित है जिस वेदी में अग्रि के सात फेरे शिव और पार्वती ने लिए थे।
इस क्षेत्र को भगवान विष्णु का क्षेत्र भी कहा जाता है। यहां सत्यनारायण भगवान की प्रतिमा भी स्थापित है जिसके दर्शन करने से सभी पापों का नाश होता है। इस स्थान पर गौरीकुंड भी मौजूद है। इस कुंड का इसलिए भी महत्व है, क्योंकि यहां माता पार्वती स्नान करती थीं और इस क्षेत्र को लेकर एक कथा भी प्रचलित है जिसमें माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को स्नान के दौरान अपने निवास के बाहर सुरक्षा हेतु नियुक्त किया था और उन्हें आदेशित किया था कि कोई भी उनकी आज्ञा के बिना प्रवेश न करे जिसका पालन भगवान गणेश ने किया और अपने पिता शिव को भी बिना अनुमति के प्रवेश नहीं करने दिया। जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश का सिर काट दिया।
चूंकि शिव और गणेश इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके बीच पिता पुत्र का रिश्ता है। क्योंकि माता पार्वती ने अपने शरीर से निकले हुए मैल से भगवान गणेश की उत्पत्ति की थी। बाद में जब यह रहस्य शिव के समक्ष माता पार्वती ने उद्घटित किया तब भगवान शिव ने हाथी का मस्तक लगाकर भगवान गणेश को पुर्नजीवित किया। इसलिए यह स्थान धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यह स्थान केदारनाथ यात्रा का अंतिम पड़ाव है। इस तरह हमारी दूसरी यात्रा संपन्न हुई।
तीसरी यात्रा गंगोत्री जहां गंगा का उदगम स्थान है
केदारनाथ की यात्रा के समापन के साथ ही हम चार धाम यात्रा के तीसरे पड़ाव गंगोत्री की ओर निकल पड़े। यह यात्रा सुगम रास्ते के साथ अपने वाहनों से पूरी की जा सकती है। यह स्थान गंगा का उदगम स्थान है। इसी स्थान पर भगवान शिव ने गंगा के तेज वेग को अपनी जटाओं में बांध लिया था और इसके बाद गंगा की धारा पृथ्वी पर पड़ी थी जिस स्थान से गंगा का उदगम हुआ उस स्थान को गौमुख के रूप में जाना जाता है।
यहां से निर्मल और निश्चल गंगा धरती पर प्रवाहित होती है। इस स्थान पर गंगा मैया का मंदिर भी स्थित है। जहां दर्शन करने के साथ ही लोग गंगा जल भरकर लाते हैं। मान्यतानुसार इस जल को दक्षिण में स्थित सेतुबंध रामेश्वरम में भगवान शिव पर चढ़ाने की परंपरा है। एक दिवसीय यह यात्रा हमने पूर्ण कर ली और इसके बाद हम यात्रा के अंतिम पड़ाव यमुनोत्री के लिए रवाना हुए।
पहाड़ों पर बर्फ की चादर और गहरी गहरी खाईयां यात्रा को बनाती हैं यादगार
यमुनोत्री चार धाम यात्रा का अंतिम पड़ाव माना जाता है। यह यात्रा बहुत ही दुर्गम और कठिनाईयों से भरी है। इस यात्रा को पैदल या घोड़ो से पूरा किया जाता है। 7 किमी की यह यात्रा बड़े बड़े पहाड़ों पर बर्फ की चादरों और संकीर्ण रास्तों के साथ साथ गहरी गहरी खाईयों के कारण यादगार बन जाती है। हम बारिश में शरीर पर प्लास्टिक की बरसातियां पहनकर यात्रा पर निकल गए और 5 घंटे दुर्गम रास्ते का सफर कर हम यमुनोत्री पहुंच गए जहां यमुना जी के उदगम स्थान पर पहुंचे। जहां गरम कुंड में स्नान करने के बाद मां यमुना के दर्शन सपरिवार किए। मंदिर के पास स्थित गरम कुंड में चावल को पोटली में रखकर पानी में डाला तो कुछ ही समय में चावल पक गए।
जिनका हम सभी ेने प्रसाद के रूप में सेवन किया। इसके बाद कुछ समय प्राकृतिक छटाओं का अवलोकन करने में व्यतीत किया। यह हमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव था। इसके बाद हम वापस आने के लिए रवाना हुए और मसूरी देहरादून होते हुए ग्वालियर अपने रिश्तेदारों को छोडऩे के बाद शिवपुरी 3 अक्टूबर को वापस आ गए। जहां परिवार के सदस्यों ने गंगा महारानी के मंदिर पर स्वागत किया।
हमारी इस 18 दिन की अविस्मरणीय यात्रा में हमने जो अनुभव महसूस किए और प्रकृति की छटा को देखा। उसका वर्णन हमने अपने आपके समक्ष अक्षरश: प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इस यात्रा में पितृपक्ष में हमने अपने पितरों का भी तर्पण किया और यह सौभाग्य हमें शिव के धाम केदारनाथ में सर्वपितृ अमावस्या पर हंस कुंड में तर्पण कर डाव का विसर्जन किया।
चार धाम की यात्रा में यमुनोत्री पहुंचने के लिए समय करें निर्धारित
हरिद्वार से जानकी चट्टी की दूरी 259 किमी है। हरिद्वार से सुबह 10 बजे भी आप निकलें तो सूर्यास्त के पूर्व वहां पहुंचना संभव नहीं है। इसलिए यमुनोत्री के जितना करीब पहुंच पहुंच जाओ यानी सयाना चट्टी या खरादी में रात रुक सकते हैं। इसके पश्चात अगले दिन स्नान आदि के पश्चात आप जानकी चट्टी तक पहुंच जाएं। वहां से आप पैदल जाते हैं तो सुबह जल्दी निकलें ताकि शाम तक वापस आ सकें।
जानकी चट्टी से यमुनोत्री 6 किमी दूर है तथा खड़ी चढ़ाई है। बुजुर्ग, कमजोर बच्चों के लिए घोड़ेे करना ठीक रहेगा। यमुनोत्री की ऊंचाई समुद्रतल से 10500 फुट (3323 मीटर) है। यमुनोत्री में जल्दी-जल्दी मौसम बदलता रहा है। दर्शन के साथ ही हिमपात का आनंद भी लिया जा सकता है। भयंकर ठंड के बीच वहां स्थित गर्म कुंड में स्नान करें और दर्शन-पूजा करें। शाम को आकर जानकी चट्टी, हनुमान चट्टी या दिन के उजाले में जहां तक भी पहुंच सकें, वहां विश्राम करें।
गंगोत्री के गर्म कुंड में अवश्य करें स्नान
यमुनोत्री से गंगोत्री 228 किमी है। अत: आपको 128 किमी दूर उत्तरकाशी में ठहरना अनिवार्य है। वहां से आप अगले दिन सुबह गंगोत्री पहुंच सकते हैं। उत्तरकाशी में भी भगवान विश्वनाथ मंदिर दर्शनीय हैं। पवित्र भागीरथी के किनारे स्थित यह बहुत सुंदर नगरी है। गंगोत्री की ऊंचाई 10300 फुट (6672 मीटर) है। गंगोत्री के पूर्व गंगनानी में गर्म पानी का पाराशर कुंड है। यहां स्नान करने के बाद ही गंगोत्री जाकर दर्शन-वंदन के बाद पुन: उत्तरकाशी में रात्रि विश्राम करें। वहां से केदारनाथ के लिए यात्रा शुरू करें।
अद्भुत आनंद की अनुभूति
गंगोत्री से केदारनाथ 463 किमी है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और हजारों फुट गहरी खाइयों तथा पहाड़ों पर जमी बर्फ का आनंद लेते हुए सफर करें। उत्तरकाशी से चलकर आपको रास्ते में कहीं रात्रि विश्राम करना पड़ सकता है। इसके लिए श्रीनगर सर्वाधिक उपयुक्त है। वहां से अगले दिन गौरीकुंड पहुंच जाएँ, वहां भी गर्म पानी का कुंड है। यहां स्नान के बाद केदारनाथ की 14 किमी चढ़ाई करें। यहां से केदारनाथ के लिए घोड़ा-पालकी भी मिलते हैं। केदारनाथ की भूमि में प्रविष्ट होते ही आनंद और आश्चर्य होता है कि 3528 मीटर की ऊंचाई पर इस मंजुल तीर्थ पर पहुंचते ही शीत, क्षुधा, पिपासा आदि कितने ही विघ्नों के होते हुए किसी की धार्मिक व्यक्ति का मन भाव समाधि में लीन हो जाता है। धवल-धवल पर्वत पंक्तियों के बीच खड़ा मनुष्य ईश्वर की अखंड विभूति देखकर ठगा-सा रह जाता है। प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को निहारकर इस रमणीय भूमि में सत्व भाव स्वमेव उभरता है।
स्विट्जरलैंड से भी अच्छा
केदारनाथ में दर्शन-पूजा कर आप रात्रि विश्राम गौरीकुंड में कर सकते हैं। चाहें तो केदारनाथ में रुक सकते हैं। गौरीकुंड से बद्रीनाथ 229 किमी है। यहां से बद्रीनाथ जाने के लिए दो मार्ग हैं। एक केदारनाथ से रुद्रप्रयाग होकर 243 किमी तो दूसरा उखीमठ होकर 230 किमी है।
नवंबर में केदारनाथ के पट बंद होने के बाद उखीमठ में पूजा होती है। इसलिए उखीमठ, तुंगनाथ चौपता होते हुए जाना ज्यादा बेहतर रहेगा। इस रास्ते में आपको चोपता में स्विट्जरलैंड से भी अच्छा लगेगा। जो पूरी यात्रा के दौरान पडऩे वाले स्थलों में सर्वाधिक ऊंचाई स्थित है। यहां तुंगनाथ के दर्शन कर सकते हैं। फिर जल्द निकलेंगे तो चमोली तक पहुंच सकते हैं।
हेमकुंड साहिब भी जाएं
पवित्र अलकनंदा के दाहिने किनारे श्री बद्रीनाथपुरी बसी है। सामने ही पुल पार करके श्री बद्रीविशाल मंदिर है। मंदिर परिसर में पहुंचते ही सारी मलिनता दूर हो जाती है। मन अनंत आनंदित हो भक्ति में लीन हो जाता है। आप बद्रीनाथ में मन चाहे जितने दिन रुकें। वहां तप्त कुंड, पंचशिला, ब्रह्मकपाल, वासुधार, माता मूर्ति, शेषनेत्र, चरणपादुका, सतोपंथ, अलकापुरी और भारत का अंतिम गांव मानागांव देखें। यहां गणेश गुफा, व्यास गुफा और सरस्वती नदी का उद्गम स्थल है, जो वहीं लुप्त भी हो जाती है। बद्रीनाथ से लौटते समय जोशीमठ में रुकें। वहां जाड़े के दिनों में बद्रीनाथ की पूजा-अर्चना होती है।
साथ ही और भी कई धार्मिक स्थल हैं। इसके अलावा जोशी मठ से 40 किमी दूर सिख समाज का प्रसिद्ध तीर्थ हेमकुंड साहिब है, जहां गुरुगोविद सिंह ने तपस्या की थी। यहां चारों ओर बर्फ के पहाड़ हैं। बीच में विशाल सरोवर है।
यात्रा पूर्व की सावधानी
हैजे का टीका लगवाएं। नि:शुल्क सुविधा ऋषिकेश, श्रीनगर, पीपलकोटि में उपलब्ध है। पानी उबालकर पिएं। यात्रा के समय पानी साथ लेकर चलें। गर्म ऊनी वस्त्र, कम्बल, वाटरप्रूफ बिस्तर, बरसाती, छाता, तौलिए, चादर, टार्च आदि आवश्यक वस्तुएं साथ में रखें।
लेखक-रामकुमार शिवहरे, वरिष्ठ पत्रकार और तरूण सत्ता के प्रधान संपादक है